- महासमुंद में 50 साल पुरानी परंपरा का भव्य आयोजन
- साहू समाज का सामाजिक सुधार की ओर बड़ा कदम
- खर्च, दहेज और बाल विवाह जैसी कुरीतियों पर करारा तमाचा
15 मई 2025, गुरुवार की सुबह। जगह- महासमुंद, छत्तीसगढ़। माहौल ऐसा जैसे कोई बड़ा त्यौहार हो। हंसते-खिलखिलाते चेहरे, सजी हुई बारातें, और सात फेरों की गूंज के बीच साहू समाज का सामूहिक विवाह सम्मेलन एक बार फिर इतिहास रच गया। लेकिन ये कोई एक दिन की कहानी नहीं, ये है एक परंपरा की गोल्डन जुबली। 1975 से चली आ रही ये परंपरा इस साल 50वीं बार निभाई गई और हर साल की तरह इस बार भी समाज को एक नई सीख दे गई।
अकाल से उठी सोच, जिसने समाज को दिशा दी
1975 में जब छत्तीसगढ़ (तब मध्यप्रदेश) के महासमुंद जिले के मूंगाशेर गांव में अकाल पड़ा था, तब खाने को अनाज नहीं था, ऐसे वक्त में शादी जैसे आयोजन करना एक बोझ लगने लगा। लोग बच्चों की शादी टाल रहे थे। लेकिन तब साहू समाज के बुजुर्गों ने कुछ अलग सोच दिखाया। उन्होंने कहा कि शादी में फिजूलखर्ची बंद होनी चाहिए, दहेज नहीं देना चाहिए, और अगर सब मिलकर साथ शादी करें, तो अनाज और पैसा दोनों बचेंगे। 15 मई 1975 को पहली बार 27 जोड़ों की शादी सामूहिक रूप से कराई गई। बस यहीं से शुरुआत हुई आदर्श साहू समाज की सोच की, जिसने देशभर में मिसाल बन गई।
जब रेडियो और बीबीसी ने भी की तारीफ
इस आयोजन की गूंज उस वक्त इतनी दूर तक पहुंची कि ऑल इंडिया रेडियो और बीबीसी लंदन ने इस पहल की तारीफ की। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तक ने साहू समाज के इस प्रयास को सराहा। ये कोई मामूली बात नहीं थी, ये उस सोच की जीत थी जो समाज के भले के लिए उठी थी।
सामूहिक विवाह के फायदे क्या हैं?
- शादी का खर्च कम होता है, जिससे गरीब परिवारों पर बोझ नहीं पड़ता।
- दहेज जैसी कुरीति पर सीधा प्रहार होता है, क्योंकि समाज के नियम से दहेज नहीं लिया या दिया जाता।
- बाल विवाह पर भी अंकुश लगता है, क्योंकि आयोजन की उम्र सीमा तय होती है।
- भाईचारे की भावना बढ़ती है, क्योंकि पूरे समाज के लोग एक साथ जुटते हैं।
- सामाजिक एकता को मजबूती मिलती है और लोगों में सहयोग की भावना बनती है।
पचास साल की परंपरा, पचास साल की प्रेरणा
इस साल का आयोजन साहू समाज के लिए एक खास मौका था, क्योंकि यह 50वीं वर्षगांठ थी। मनोहर साहू, लाल जी साहू और छन्नू साहू जैसे वरिष्ठ समाजसेवियों ने बताया कि जब पहली बार आयोजन हुआ था, तब मकसद था समाज में फिजूलखर्ची और कुरीतियों को रोकना। और आज, जब पूरे देश में शादी में करोड़ों खर्च होते हैं, तब साहू समाज आज भी उसी सोच के साथ खड़ा है।
तोखन साहू भी हुए शामिल, बोले – समाज को नई दिशा दे रहा ये सम्मेलन
केंद्रीय मंत्री तोखन साहू खुद इस आयोजन में बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे। उन्होंने कहा कि ये उनके लिए गर्व की बात है कि वो ऐसे समाज का हिस्सा हैं, जो सिर्फ शादी नहीं कराता, बल्कि एक नई दिशा देता है। उन्होंने कहा कि महंगाई के इस दौर में साहू समाज ने बाकी समाजों के सामने एक मजबूत उदाहरण रखा है।
पढ़े-लिखे समाज की समझदारी
साहू समाज को हमेशा से पढ़े-लिखे और प्रगतिशील समाज के तौर पर जाना जाता रहा है। इस समाज ने हमेशा विज्ञान, शिक्षा और सामाजिक सुधारों को बढ़ावा दिया है। सामूहिक विवाह जैसे आयोजनों के जरिए साहू समाज ने यह साबित कर दिया कि परंपराएं भी अगर समझदारी से निभाई जाएं, तो वो बदलाव ला सकती हैं।
अमीर-गरीब का भेद मिटा, सबने लिए सात फेरे
साहू समाज के इस सम्मेलन की खास बात ये है कि इसमें अमीर और गरीब का कोई भेद नहीं। एक ही मंडप में सब बेटे-बेटियों की शादी होती है। कोई फिजूलखर्ची नहीं, कोई शान-शौकत नहीं, बस समाज की भागीदारी और एक सुंदर शुरुआत।
आज भी बुजुर्गों के रास्ते पर चल रहा है समाज
साहू समाज आज भी अपने उन बुजुर्गों के रास्ते पर चल रहा है, जिन्होंने 1975 में यह बीज बोया था। समाज की यह पहल आज न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा बन चुकी है। जहां एक तरफ लोग शादी में करोड़ों खर्च कर दिखावा करते हैं, वहीं साहू समाज हर साल सादगी और समझदारी के साथ नई पीढ़ी को रास्ता दिखा रहा है।
समापन: ये सिर्फ शादी नहीं, एक आंदोलन है
महासमुंद का ये आयोजन सिर्फ शादी कराने की रस्म नहीं है। ये एक आंदोलन है, जो समाज को बता रहा है कि अगर सोच सच्ची हो, तो परंपराएं भी बदलाव ला सकती हैं। साहू समाज का ये सम्मेलन हर उस सोच पर तमाचा है, जो दहेज, दिखावा और खर्चीली शादी को जरूरी मानती है।