छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में स्थित मां दंतेश्वरी मंदिर देश के 52 शक्तिपीठों में से एक है। इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां साल में दो नहीं, बल्कि तीन बार नवरात्रि मनाई जाती है। जहां पूरे देश में चैत्र और शारदीय नवरात्र का ही प्रचलन है, वहीं इस मंदिर में फाल्गुन मास में भी नवरात्रि मनाई जाती है, जिसे फागुन मड़ई कहा जाता है। यही वजह है कि यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए विशेष आस्था का केंद्र बना हुआ है।
610 साल पुरानी परंपरा, जब तक माता न आएं, तब तक नहीं होता दशहरा
मां दंतेश्वरी मंदिर की परंपराएं भी अनोखी हैं। यहां माता को बस्तर दशहरा में शामिल होने के लिए विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता है। राज परिवार के सदस्य शारदीय नवरात्र की पंचमी पर माता को निमंत्रण देने के लिए पहुंचते हैं। यह परंपरा पिछले 610 सालों से चली आ रही है। अष्टमी के दिन माता अपने भक्तों को दर्शन देने के लिए मंदिर से बाहर निकलती हैं। माता का छत्र और डोली बस्तर दशहरा में ले जाया जाता है, जहां उनकी नगर परिक्रमा करवाई जाती है। इस पर्व की रस्में पूरे 75 दिनों तक चलती हैं, जो इसे दुनिया का सबसे लंबा दशहरा उत्सव बनाती हैं।
बदलते वक्त के साथ बढ़ी आस्था, अब लाखों की संख्या में आते हैं श्रद्धालु
एक समय था जब नक्सली प्रभाव के कारण श्रद्धालु यहां आने से डरते थे, लेकिन अब तस्वीर बदल गई है। नवरात्रि के दौरान लाखों भक्त मां दंतेश्वरी के दर्शन करने के लिए उमड़ते हैं। 12वीं-13वीं शताब्दी में बना यह मंदिर अपनी भव्यता और दिव्यता के लिए जाना जाता है। यह मंदिर शंखनी-डंकनी नदी के तट पर स्थित है और इसकी मान्यता महाराष्ट्र और तेलंगाना तक फैली हुई है। गढ़चिरौली जिले और तेलंगाना के कुछ हिस्सों के लोग भी मां दंतेश्वरी को अपनी इष्ट देवी मानते हैं।
तीन बार विशेष पूजा, विदेशों से जलवाई जाती हैं ज्योत
मां दंतेश्वरी मंदिर में साल में तीन बार विशेष पूजा होती है—शारदीय नवरात्रि, चैत्र नवरात्रि और फागुन मड़ई। फागुन मड़ई को तीसरा नवरात्र भी कहा जाता है, जिसमें पूरे नौ दिनों तक देवी की पूजा-अर्चना होती है। इस दौरान सात हजार से अधिक घी और तेल के दीये जलाए जाते हैं। इतना ही नहीं, विदेशों से भी भक्त इस दौरान ज्योत जलवाते हैं और अपनी मनोकामनाएं मां के चरणों में समर्पित करते हैं।
मंदिर का अनोखा वास्तुशिल्प और भैरव बाबा की सुरक्षा
मां दंतेश्वरी मंदिर का गर्भगृह ग्रेनाइट पत्थरों से बना हुआ है, जिसे सदियों पहले निर्मित किया गया था। शुरुआत में केवल गर्भगृह था, लेकिन समय के साथ राजाओं ने इसमें और विस्तार किया। मंदिर के बाहरी हिस्से का निर्माण इमारती लकड़ी सरई और सागौन से किया गया, जिसे बस्तर की रानी प्रफुल्लकुमारी देवी ने बनवाया था। मंदिर के द्वार पर भैरव बाबा की विशाल मूर्तियां स्थापित हैं, जिन्हें माता का अंगरक्षक माना जाता है। मान्यता है कि भैरव बाबा की पूजा करने से भक्तों की मनोकामनाएं माता तक पहुंचती हैं और शीघ्र पूरी होती हैं।
ऐसे पड़ा दंतेवाड़ा नाम
मंदिर के प्रधान पुजारी हरेंद्रनाथ जिया के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता सती के शरीर को 52 भागों में विभाजित किया, तो उनके दांत यहां गिरे थे। इसी कारण देवी का नाम ‘दंतेश्वरी’ पड़ा और जिस स्थान पर यह घटना हुई, उसे ‘दंतेवाड़ा’ नाम मिला। बदलते समय के साथ मंदिर का महत्व और भी बढ़ता जा रहा है। माता के चमत्कारों ने भक्तों की आस्था को और मजबूत कर दिया है।
देश का इकलौता मंदिर, जहां तीन बार मनाई जाती है नवरात्रि
दंतेश्वरी मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यही है कि यह भारत का इकलौता ऐसा शक्तिपीठ है, जहां साल में तीन बार नवरात्रि मनाई जाती है। यह मंदिर न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से बल्कि सांस्कृतिक विरासत के रूप में भी बस्तर और छत्तीसगढ़ की पहचान बना हुआ है।