- दांत फंसा, मौत मुँह में!
- डॉक्टरों का करिश्मा, बिना चीरफाड़ जान बचाई!
- भोपाल में उम्मीद का नया ठिकाना, BMHRC!
भोपाल: मरते हुए इंसान को BMHRC के डॉक्टर्स ने दी नई ज़िंदगी, बिना ऑपरेशन निकाल दिया गले में फंसा दांत!
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से एक ऐसी खबर आई है, जिसे सुनकर आप दाँतों तले उंगलियाँ दबा लेंगे! भोपाल के बीएमएचआरसी (Bhopal Memorial Hospital and Research Centre) के काबिल डॉक्टरों ने ऐसा कमाल कर दिखाया है कि हर कोई वाह-वाह कर रहा है। उन्होंने एक 54 साल के मरीज़ की आहार नली में फँसे एक दांत को बिना किसी बड़े ऑपरेशन के, सिर्फ एंडोस्कोपी की मदद से बाहर निकाल दिया। सोचिए, एक इंसान जो मौत के मुँह से लौट आया, वो भी बिना शरीर पर कोई कट लगाए!
गले में फंसा दाँत, ज़िन्दगी बनी ज़हर!
कहानी शुरू होती है एक 54 साल के मरीज़ से, जिसकी ज़िंदगी गले में फँसे एक दाँत ने नरक बना रखी थी। वो बेचारा लंबे समय से कुछ भी निगल नहीं पा रहा था, सिर्फ पतली चीज़ों के सहारे ज़िंदा था। हद तो तब हो गई जब बोलने में भी उसे दिक्कत होने लगी। इस दर्द और परेशानी से छुटकारा पाने के लिए वो ललितपुर से लेकर झाँसी, ग्वालियर और भोपाल तक के कई बड़े अस्पतालों के चक्कर काट आया। हर जगह जाँच हुई, पता चला कि आहार नली में कोई कड़ी चीज़ फँसी है, और अंदाज़ा यही था कि ये कोई दाँत है।
ग्वालियर में हाथ खड़े, ऑपरेशन का डर!
ग्वालियर में तो डॉक्टरों ने एंडोस्कोपी से निकालने की कोशिश भी की, लेकिन नाकाम रहे। इसके बाद तो कई अस्पतालों के डॉक्टरों ने सीधे बोल दिया कि बिना ऑपरेशन के ये दांत नहीं निकलेगा। अब मुश्किल ये थी कि मरीज़ की उम्र और उसकी कमज़ोर हालत को देखते हुए, ऑपरेशन करवाना जान को बड़ा खतरा दे सकता था। सोचिए, एक तरफ दाँत का दर्द और दूसरी तरफ ऑपरेशन का डर! ऐसे में मरीज़ की उम्मीद लगभग टूट चुकी थी, लेकिन फिर वो अपनी आखिरी उम्मीद लेकर भोपाल के बीएमएचआरसी पहुंचा।
BMHRC में उम्मीद की किरण, और चमत्कार!
बीएमएचआरसी पहुंचते ही डॉक्टरों ने मरीज़ की गंभीर हालत को समझा और उसी दिन आपातकालीन एंडोस्कोपी करने का फैसला किया। गैस्ट्रोएंटरोलॉजी विभाग की विजिटिंग कंसल्टेंट डॉ. तृप्ति मिश्रा की अगुवाई में एंडोस्कोपी टीम ने इस मुश्किल भरे काम को हाथ में लिया। उन्होंने एक-एक कदम बड़ी सावधानी से रखा, और अपनी पूरी काबिलियत झोंक दी। और फिर हुआ चमत्कार! डॉक्टरों की मेहनत रंग लाई, और बिना किसी चीरफाड़ के, वो फंसा हुआ दांत सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया! इस पूरे खेल के दौरान मरीज़ पर लगातार नज़र रखी गई, ताकि कोई दिक्कत न हो।
अब चैन से खा रहा, बोल रहा!
सफल एंडोस्कोपी के बाद अब वो मरीज़ सामान्य रूप से खाना खा पा रहा है और बोलने में भी उसे कोई दिक्कत नहीं हो रही। सोचिए, जिस इंसान की ज़िंदगी दाँत ने मुश्किल कर दी थी, उसे अब नई ज़िंदगी मिल चुकी है। बीएमएचआरसी की निदेशक प्रभारी डॉ. मनीषा श्रीवास्तव ने गर्व से बताया कि ये केस उनके अस्पताल की हिम्मत, टीम वर्क और डॉक्टरों की ज़बरदस्त काबिलियत का शानदार नमूना है। उन्होंने कहा कि बीएमएचआरसी सिर्फ गैस पीड़ितों के लिए ही नहीं, बल्कि हर ज़रूरतमंद मरीज़ के लिए भरोसे का दूसरा नाम है। वाकई, इस कहानी से ये साबित होता है कि सही समय पर सही इलाज और डॉक्टरों का हौसला मिलकर नामुमकिन को भी मुमकिन बना देता है!