छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के एक छोटे से गांव घुइटांगर से निकले अनिमेष कुजूर ने वो कर दिखाया है, जो देश के गिने-चुने एथलीट ही कर पाए हैं। ग्रीस के वारी शहर में हुए ड्रोमिया इंटरनेशनल स्प्रिंट मीट में उन्होंने 100 मीटर की दौड़ महज 10.18 सेकंड में पूरी की। इस रिकॉर्ड टाइम के साथ उन्होंने भारत के लिए ब्रॉन्ज मेडल जीता।
पहली बार नहीं, कई बार रचा इतिहास
अनिमेष ने पहली बार भारत का नाम रोशन नहीं किया। इससे पहले भी वे कई राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में मेडल झटक चुके हैं। लेकिन इस बार बात इंटरनेशनल लेवल की थी। पहले नंबर पर साउथ अफ्रीका और दूसरे पर ओमान रहा, लेकिन भारत के लिए अनिमेष की यह दौड़ एक नई उम्मीद की रफ्तार लेकर आई।
खेतों से स्कूल और स्कूल से स्टेडियम तक का सफर
अनिमेष की दौड़ की शुरुआत किसी महंगे स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स से नहीं, बल्कि खेतों के कच्चे रास्तों से हुई थी। उनके माता-पिता छत्तीसगढ़ पुलिस में डीएसपी हैं, और नौकरी के चलते अनिमेष ने बचपन में कई जिलों में रहकर पढ़ाई की।
सैनिक स्कूल ने बदली जिंदगी की दिशा
क्लास 6 में उनका सिलेक्शन सैनिक स्कूल अंबिकापुर में हुआ, जहां अनुशासन और मेहनत ने उन्हें नई दिशा दी। वहां रहते हुए उन्होंने कोरोनाकाल के दौरान भी खुद को तैयार किया। ना मैदान था, ना कोच, लेकिन जज्बा ज़िंदा था।
पांच इवेंट्स, पांच गोल्ड, और फिर नेशनल ट्रैक
कांकेर जिले की एक स्पर्धा में उन्होंने 100, 200, 400 मीटर रेस के साथ लॉन्ग और हाई जंप में पांचों में गोल्ड मेडल जीत लिया। फिर रायपुर वेस्ट ज़ोन और वहां से गुवाहाटी नेशनल अंडर-18 तक उनका सिलेक्शन हुआ।
पहली बार पहने स्पाइक शूज़, फिर भी दौड़े सबसे आगे
गुवाहाटी के लिए जाते समय अनिमेष ने पहली बार प्रोफेशनल स्पाइक शूज़ पहने थे, जो उनके पिता ने दिलाए थे। उसके बाद भी उन्होंने 100 और 200 मीटर में चौथा स्थान पाया।
आज लाखों के लिए बन चुके हैं मिसाल
अनिमेष कुजूर की कहानी सिर्फ एक एथलीट की नहीं, बल्कि गांव से निकलकर दुनिया में परचम लहराने की मिसाल है। वो सबके लिए एक सबक है कि संसाधनों की कमी, अगर मेहनत और इरादे के सामने आ जाए, तो उसे भी पछाड़ा जा सकता है। ये खबर सिर्फ एक खिलाड़ी की नहीं, बल्कि भारत के हर उस नौजवान की कहानी है जो कहता है – “अगर दौड़ लगा
ई है, तो जीतकर ही लौटूंगा”