- बस्तर के पंडी राम मंडावी को पद्मश्री सम्मान मिला है
- उन्होंने पारंपरिक वाद्ययंत्र और शिल्पकला में कमाल किया है
- बस्तर की संस्कृति को दी नई पहचान, देश भर में छाई कला
अरे भैया! खबर पक्की है, छत्तीसगढ़ के बस्तर से एक ऐसी कहानी आई है, जो सीधे दिल में उतर जाएगी। बात हो रही है पंडी राम मंडावी की, जिन्हें हाल ही में राष्ट्रपति भवन में पद्मश्री से नवाजा गया है। अब आप सोचेंगे, कौन हैं ये पंडी राम मंडावी? तो सुनिए, ये वो धुरंधर कलाकार हैं जिन्होंने अपनी कला से बस्तर की माटी का नाम पूरी दुनिया में रोशन कर दिया है। इनका हुनर ऐसा कि जिसने देखा, वो देखता रह गया और जिसने सुना, वो झूम उठा! 🥁
राष्ट्रपति भवन में गूंजा बस्तर का नाम
मंगलवार का दिन था, दिल्ली के राष्ट्रपति भवन में एक शानदार समारोह चल रहा था। देश के कोने-कोने से चुने हुए 68 हीरे-मोती पद्म पुरस्कार लेने पहुंचे थे। और इन्हीं जगमगाते सितारों के बीच, छत्तीसगढ़ के अपने पंडी राम मंडावी भी शान से खड़े थे। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें अपने हाथों से ये बड़ा सम्मान दिया। सोचिए, गणतंत्र दिवस से ठीक एक दिन पहले 25 जनवरी को इन पुरस्कारों का ऐलान हुआ था और अब जाकर ये सुनहरे पल सामने आए हैं। ये सिर्फ पंडी राम मंडावी का सम्मान नहीं है, ये पूरे छत्तीसगढ़ का मान है, बस्तर की पहचान है, और हमारी अनमोल संस्कृति का गौरव है! 🌟
गोंड मुरिया जनजाति के चमकते सितारे
पंडी राम मंडावी सिर्फ एक कलाकार नहीं, बल्कि बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर के सच्चे रखवाले हैं। नारायणपुर जिले के गोंड मुरिया जनजाति से आने वाले ये 68 साल के बुजुर्ग कलाकार, पिछले पांच दशकों से भी ज्यादा समय से अपनी कला को सींच रहे हैं। पारंपरिक वाद्ययंत्र बनाने से लेकर लकड़ी की लाजवाब शिल्पकला तक, इन्होंने हर जगह अपना लोहा मनवाया है। इनका काम ऐसा है कि आज देश भर में लोग इनकी कला के मुरीद हैं। इन्होंने न सिर्फ बस्तर की पुरानी कला को जिंदा रखा है, बल्कि उसे एक नई, मॉडर्न पहचान भी दी है। ये बिल्कुल किसी जादूगर से कम नहीं, जो मिट्टी और लकड़ी से जान डाल देते हैं! ✨
‘सुलुर’ बांसुरी से मिली विश्वव्यापी पहचान
अगर पंडी राम मंडावी के नाम का जिक्र हो और बस्तर बांसुरी यानी ‘सुलुर’ की बात न हो, तो ये नाइंसाफी होगी। इनकी पहचान इस बांसुरी से भी है। लेकिन सिर्फ बांसुरी ही नहीं, इन्होंने लकड़ी के पैनलों पर उभारदार चित्र (जिन्हें आप 3D कह सकते हैं), मूर्तियां और कई तरह की अद्भुत शिल्पकृतियां बनाकर अपनी कला को पूरी दुनिया में फैलाया है। इनके हाथों में वो जादू है जो लकड़ी के बेजान टुकड़ों को जीवंत कलाकृतियों में बदल देता है। इनका काम सिर्फ कला प्रदर्शन नहीं, बल्कि बस्तर की आत्मा को बचाए रखने का एक जरिया है। पद्मश्री मिलना, इनकी सालों की मेहनत, लगन और बस्तर के प्रति उनके अगाध प्रेम का ही नतीजा है। ये बताता है कि सच्चा हुनर और कला, कभी छिपती नहीं, वो एक न एक दिन पूरी दुनिया के सामने आती ही है! 🌍