‘मां को ज्यादा क्यों दूं?’—बेटे की याचिका पर कोर्ट ने सुनाई खरी-खोटी, बागबान जैसे केस पर कोर्ट ने दिखाया आइना
अहमदाबाद: गुजरात हाईकोर्ट में एक मामला आया जिसने फिल्म बागबान की याद दिला दी। एक बुजुर्ग मां के मेंटीनेंस को लेकर उसके बेटे ने ऐसा तर्क दिया कि सुनकर अदालत भी हैरान रह गई। बेटे ने कहा कि उसे अपनी मां को ज्यादा पैसे क्यों देने पड़ रहे हैं, जब प्रॉपर्टी का बंटवारा बराबर हुआ था?
टीचर बेटे ने की याचिका, बोला- भाई से ज्यादा क्यों दूं?
यह याचिका एक सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक ने दायर की थी। उनका कहना था कि जिला अधिकारियों ने मां के मेंटीनेंस में उनके हिस्से का बोझ ज्यादा डाल दिया। उन्हें हर महीने 7000 रुपये मां को देने को कहा गया, जबकि छोटे भाई को सिर्फ 3000 रुपये देने का आदेश था।
कोर्ट ने कहा- कुछ हजार रुपये को अहम का मुद्दा न बनाओ
गुजरात हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए साफ कहा—“एक मां को कुछ हजार रुपये ज्यादा देना कोई बड़ी बात नहीं होनी चाहिए। इसे अहम का मुद्दा बनाना ठीक नहीं।” कोर्ट का ये जवाब उसी बेटे के लिए था जो मां के खर्चे पर हिसाब-किताब में लग गया था।
बंटवारा हुआ था बराबर, जिम्मेदारी नहीं
अरावली जिले के इस परिवार में संपत्ति तो बराबर बंटी थी, लेकिन जिम्मेदारियां अलग-अलग तय हुई थीं। समझौते के मुताबिक, बड़ा बेटा पिता की देखभाल करेगा और छोटा बेटा मां के साथ रहेगा। लेकिन जब मां ने इलाज और भरण-पोषण की जरूरत बताई, तो बड़ा बेटा पीछे हटने लगा।
मां ने मांगे थे 2 लाख इलाज के लिए
पिता की मौत के बाद मां ने SDM और अतिरिक्त कलेक्टर को एक अर्जी दी। उन्होंने कहा कि उम्र 79 साल की हो गई है, घुटनों की सर्जरी करानी है और दोनों बेटों से 40 हजार रुपये मासिक भरण-पोषण चाहिए। साथ ही 2 लाख रुपये इलाज के लिए।
SDM ने दिया फैसला—बेटों को बंटकर देना होगा खर्च
17 सितंबर 2024 को SDM ने फैसला सुनाया। मां को बड़े बेटे से हर महीने 7000 और छोटे बेटे से 3000 रुपये देने का आदेश हुआ। साथ ही सर्जरी का खर्च दोनों को बराबर उठाना होगा।
कोर्ट ने माना- बड़े बेटे की आमदनी ज्यादा है
हाईकोर्ट ने सरकारी दस्तावेज देखकर पाया कि बड़ा बेटा सरकारी टीचर होने के साथ-साथ खेती से भी कमाता है। जबकि छोटे बेटे की आमदनी केवल खेती से है और उसके कोई पक्के सबूत भी नहीं हैं कि वह और कुछ कमाता है। इसलिए SDM का फैसला बिल्कुल सही माना गया।
याचिका खारिज, कोर्ट ने कहा- मां को देना फर्ज है, एहसान नहीं
कोर्ट ने दो टूक कहा कि यह मामला कोई कानूनी पेच नहीं बल्कि इंसानियत का है। मां की देखभाल करना कोई एहसान नहीं, यह फर्ज है। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि SDM का आदेश पूरी तरह सही है और इसमें कोई दखल नहीं दिया जा सकता।