- अबूझमाड़ के जंगलों में माओवादियों पर सबसे बड़ा वार
- नक्सलियों का ‘ओसामा बिन लादेन’ बसवराजु मारा गया
- डीआरजी की बहादुरी से माओवादियों की रीढ़ टूटी
छत्तीसगढ़ के नारायणपुर, बीजापुर और दंतेवाड़ा की सीमा पर फैले अबूझमाड़ के घने जंगलों में डीआरजी ने माओवादियों की कमर तोड़ दी है। 21 मई की सुबह हुए मुठभेड़ में 27 कुख्यात नक्सली मारे गए, जिनमें माओवादी संगठन का टॉप बॉस नंबाला केशव राव उर्फ बसवराजु, बीआर दादा और गगन्ना भी शामिल हैं। यह माओवादी संगठन के इतिहास का सबसे बड़ा झटका माना जा रहा है।
नक्सलियों का ‘लादेन’ खत्म
बसवराजु माओवादियों के लिए वही था जो आतंकियों के लिए ओसामा बिन लादेन। बीते 20 सालों से वो पूरे देश में नक्सली नेटवर्क को चला रहा था। वही प्लान बनाता था, वही हमला करवाता था, और वही विचारधारा फैलाता था। उसका मारा जाना माओवादी संगठन के लिए ऐसा झटका है, जिससे उबरना मुश्किल होगा।
ऑपरेशन की कहानी – जान पर खेलकर लड़ाई
19 मई को डीआरजी की टीमें नारायणपुर, दंतेवाड़ा, बीजापुर और कोंडागांव से निकली थीं। इनकी सूचना पक्की थी, लेकिन जंगल के हालात खतरनाक थे। 21 मई की सुबह माओवादियों ने अचानक गोलीबारी शुरू कर दी, लेकिन हमारे डीआरजी के जवान डटे रहे। जवाबी कार्रवाई में एक-एक कर 27 नक्सली ढेर हुए। एक जवान शहीद हो गया, कुछ घायल हुए, लेकिन डीआरजी ने जंगल में मोर्चा नहीं छोड़ा।
हथियारों का जखीरा बरामद
मुठभेड़ के बाद जब तलाशी अभियान चला, तो जमीन पर दिखा असली नतीजा – AK-47, INSAS, SLR, कार्बाइन और ढेर सारा गोला-बारूद बरामद हुआ। ये वही हथियार थे जिनसे नक्सली सालों से सुरक्षाबलों पर हमला करते रहे थे।
कौन हैं ये DRG वाले जो नक्सलियों के काल बन चुके हैं?
डीआरजी यानी जिला रिजर्व गार्ड। 2015 में छत्तीसगढ़ सरकार ने इसे बनाया था, खासतौर पर लोकल युवाओं को ट्रेनिंग देकर। ये जवान इलाके की भाषा, जंगल और माओवादी चालों से वाकिफ होते हैं। इनमें कुछ वो भी हैं जो कभी नक्सली थे लेकिन मुख्यधारा में लौटकर अब सिस्टम के लिए काम कर रहे हैं। इन्हें नक्सलियों की सोच और हरकतों की गहरी समझ होती है। ये गुरिल्ला लड़ाई में माओवादियों को उन्हीं की भाषा में जवाब देना जानते हैं।
4 दिन जंगल में टिकने वाले बहादुर
डीआरजी के जवान 3-4 दिन बिना रुके जंगलों में सर्च ऑपरेशन चलाते हैं। नक्सलियों के गांवों, मददगारों और अड्डों की पहचान करते हैं। यही वजह है कि वो हर बार ऑपरेशन में सफल रहते हैं। इस बार भी उन्होंने वो कर दिखाया जो अब तक कोई नहीं कर पाया था।
शहीद को सलाम, बहादुरी को सलाम
इस ऑपरेशन में एक जवान ने शहादत दी, लेकिन उसकी कुर्बानी बेकार नहीं गई। बाकी घायल जवान खतरे से बाहर हैं। जो जज्बा इन जवानों ने दिखाया है, वो आने वाली पीढ़ियों को भी याद रहेगा। जंगल में नक्सलियों को उन्हीं के गढ़ में घुसकर मार गिराना कोई आसान बात नहीं होती।