जगदलपुर, बस्तर। बस्तर की धरती, जो कभी लाल आतंक के साए में सिसकती थी, अब एक नई सुबह देख रही है! छत्तीसगढ़ के बस्तर में पिछले दो सालों से नक्सलवाद के खिलाफ ताबड़तोड़ एक्शन चल रहा है, और अब तो ऑपरेशन को और धार दे दी गई है. अभी हाल ही में, 21 मई को अबूझमाड़ में एक जोरदार नक्सल ऑपरेशन में नक्सलियों के बड़े लीडर बसवराजू का किस्सा ही खत्म हो गया. ये तो रही ग्राउंड पर की बात, लेकिन अब लड़ाई सिर्फ बंदूक तक नहीं, विचारों की पिच पर भी लड़ी जा रही है! इसी कड़ी में माओवादियों के कुरूप चेहरे को देश के सामने लाने के लिए बस्तर में एक झन्नाटेदार कार्यक्रम हुआ-
‘बीजिंग से बस्तर’.
‘बीजिंग से बस्तर’: माओवाद के ‘खूनी’ चेहरे से पर्दा!
बस्तर शांति समिति ने ये कमाल का कार्यक्रम ‘बीजिंग से बस्तर’ आयोजित किया. इसका सीधा मकसद था, लोगों को ये दिखाना कि नक्सलवाद कितना क्रूर और खूनी है. इस महफिल में ‘द बस्तर स्टोरी’ फिल्म बनाने वाले सुदीप्तो सेन और अपने गृहमंत्री विजय शर्मा समेत भारी संख्या में लोग मौजूद थे. इस कार्यक्रम में चीन की कम्युनिस्ट सरकार के उस काले दिन को याद किया गया, जब 1989 में बीजिंग के थियानमेन चौक पर लोकतंत्र मांग रहे हजारों छात्रों को कम्युनिस्ट सरकार ने गोलियों से भून दिया था. सोचिए, जहां लोकतंत्र मांगना गुनाह हो, वहां की विचारधारा बस्तर में भला कैसे शांति ला सकती है! इस घटना के जरिए बस्तर में माओवादियों के खूनी खेल को लोगों के सामने रखा गया. यानी, ये सिर्फ गोली-बारूद की नहीं, बल्कि विचारों के जहर की भी लड़ाई है.
गृहमंत्री विजय शर्मा का नक्सलियों पर सीधा ‘शर्मा अटैक’!
छत्तीसगढ़ के डिप्टी सीएम और गृहमंत्री विजय शर्मा ने मंच से नक्सलियों पर जोरदार प्रहार किया. उन्होंने साफ कहा कि ये अपने आपको माओवादी कहलाना पसंद करते हैं, तो जरा ये भी समझ लें कि माओवाद क्या है, कहां से शुरू हुआ, और इसमें क्या-क्या खून-खराबा हुआ है. उन्होंने 1989 के थियानमेन चौक की घटना का जिक्र करते हुए कहा कि लोगों को ये बात जाननी चाहिए कि जब बंदूक की नली से सरकार बनती है, तो फिर वो सरकार सिर्फ बंदूक से ही बात करती है.
शर्मा जी ने जवानों का जोश बताते हुए कहा कि “जवानों में गजब का जोश है, गजब का उत्साह है. जवानों की भुजाओं का ताकत गजब है. जवानों से हाथ मिलाओ तो करंट लगता है.” लेकिन साथ ही उन्होंने एक उम्मीद की किरण भी दिखाई. उन्होंने कहा कि “मेरा इतना कहना है कि उसमें काफी लोग ऐसे हैं जो फंसे हुए हैं. वो वापस मुख्यधारा में आना चाहते हैं. पुनर्वास करना चाहते हैं.” उन्होंने ये भी साफ किया कि “विष्णु देव जी की सरकार एक गोली नहीं चलाना चाहती है. केंद्र की सरकार माननीय अमित शाह जी एक गोली नहीं चलाना चाहती है.” यानी, सरकार शांति से समाधान चाहती है.
युवाओं की बंपर भागीदारी, माओवाद की ‘पोल’ खुली!
इस कार्यक्रम में युवाओं की भारी भीड़ देखकर गृहमंत्री विजय शर्मा गदगद हो गए. उन्होंने कहा कि सबसे पहले उन्होंने नौजवानों को ही संबोधित किया, क्योंकि उन्हें ये समझना बहुत जरूरी है कि “माओवाद है क्या, यह कैसे होता है.” उन्होंने उन लोगों को भी लपेटा, जो माओवाद को गरीबों का मसीहा बताते हैं. शर्मा जी ने कहा कि “कहीं किसी ने शिगूफा बनाकर रखा है कि यह गरीबों के लिए लड़ते हैं. इस तरह की कोई बात फैला के रखी है. जबकि स्पष्ट यह है कि ये बंदूक की नली से सरकार बनाना चाहते हैं. जब ऐसी सरकार बनती है तो वही सरकार होती है जो चीन में है.”
उन्होंने बाहरी तत्वों को भी आड़े हाथों लिया, जो बस्तर के दर्द से कोसों दूर बैठकर ज्ञान बांटते हैं. शर्मा जी ने दो टूक कहा कि “जो बस्तर के दर्द में कभी खड़ा ना हुआ हो. बस्तर के दुख दर्द में कभी शामिल न हुआ हो. आज हैदराबाद में बैठ करके और चार लोग बैठ जाएं और कह दें कि सरकार को क्या करना चाहिए राज्य की सरकार को क्या करना चाहिए. यह डायरेक्शन देंगे. यह स्वीकार नहीं है.” उन्होंने साफ किया कि ऐसे लोगों से कोई बात नहीं होगी, हां, अगर माओवादी चाहें तो “निशर्त बात होगी.” यानी, सरकार की बात साफ है- पहले हथियार छोड़ो, फिर टेबल पर आओ.
सरकार का ‘रेड कार्पेट’, नक्सलियों को ‘नई राह’!
विजय शर्मा ने सरकार का पक्ष जोरदार तरीके से रखा. उन्होंने कहा कि सरकार डरी हुई है या नहीं, इसका कोई मतलब नहीं. उनका सीधा आग्रह है कि केंद्र और राज्य सरकार दोनों गोली नहीं चलाना चाहती हैं. उन्होंने नक्सलियों से अपील की कि वे “मुख्यधारा में आएं, पुनर्वास करें और बहुत अच्छी पुनर्वास नीति के तहत सरकार उनका रेड कारपेट बिछा करके स्वागत करने को तैयार है.” उन्होंने साफ कहा कि “अब उनके मन में जो भी होगा वह मैं नहीं जानता हूं, मैं तो सिर्फ यह कहता हूं वह सिर्फ मुख्यधारा में आएं.” सरकार की रणनीति साफ है: “टॉक ऑन सिंगल पॉइंट और टॉक ऑन मल्टीपल पॉइंट, वी फॉलो मल्टीपल पॉइंट.” यानी, विकास और शांति के लिए सरकार हर संभव रास्ते पर चलेगी, जिसमें जनता की अधिकतम भागीदारी हो.
शर्मा जी ने ये भी बताया कि दुनिया में और भी जंगल हैं, लेकिन वहां माओवादी नहीं हैं. उन्होंने मिसाल दी, “अमेजॉन के जंगल में माओवादी नहीं है, कैलिफोर्निया के जंगल में माओवादी नहीं है, कनाडा के जंगल में माओवादी नहीं है, यूरोप के जंगल में माओवादी नहीं है, लाइब्रेरियन के जंगल में माओवादी नहीं है, अफ्रीका के जंगल में माओवादी नहीं है, ऑस्ट्रेलिया के जंगल में माओवादी नहीं है, तो ऐसी शिगूफा क्यों मन में पालकर कोई करके बैठा है.” सीधी बात, माओवाद सिर्फ भारत के कुछ हिस्सों में है, क्योंकि यहां कुछ लोग इसे हवा दे रहे हैं.
सुदीप्तो सेन: विचारों की लड़ाई है ये, बंदूक की नहीं!
फिल्म निर्देशक सुदीप्तो सेन ने भी अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि बस्तर के जंगलों में सुप्रीम कमांडर की हत्या हो जाना या 100, 200, 300 माओवादियों का खत्म हो जाना, ये अच्छी खबर है. लेकिन उन्होंने साफ किया कि “लड़ाई बंदूक की नहीं है, लड़ाई विचार की है और यह काफी गंभीर लड़ाई है.” उन्होंने बताया कि ये लड़ाई किसके साथ है, वो चेहरा सामने नहीं है. “उनको आप जानते हैं उनकी सोच से तो लड़ाई और कठिन है.” यानी, ये सिर्फ गोलियां चलाने से खत्म नहीं होगा, बल्कि लोगों के दिमाग से माओवादी विचारधारा को निकालना होगा.
कुल मिलाकर, ‘बीजिंग से बस्तर’ कार्यक्रम ने ये साबित कर दिया कि बस्तर में सिर्फ बंदूक की नहीं, बल्कि विचारों की जंग भी लड़ी जा रही है. सरकार और समाज मिलकर माओवाद की जड़ों पर प्रहार कर रहे हैं, ताकि बस्तर में विकास और शांति की नई इबारत लिखी जा सके. और हां, गृहमंत्री की अपील साफ है- नक्सलियों, अब बहुत हुआ, वापस आ जाओ, विकास का रास्ता तुम्हारा इंतजार कर रहा है!