अब भाईसाहब, ये तो हर कोई जानता है कि धान की सबसे ज्यादा पैदावार पश्चिम बंगाल में होती है, लेकिन जब बात धान के कटोरे की आती है तो छत्तीसगढ़ का नाम चमकता है। सोचिए, सबसे ज्यादा चावल बंगाल में उगता है, मगर ‘धान का कटोरा’ कहलाने का खिताब छत्तीसगढ़ के नाम! ये सुनकर दिमाग चकरा जाए तो कोई ग़लत नहीं। मगर जनाब, इसके पीछे एक ऐसी कहानी है जो जानने लायक है।
धान की धरती छत्तीसगढ़: सिर्फ उगाने में नहीं, किस्मों में भी आगे
असल में छत्तीसगढ़ को ‘धान का कटोरा’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि यहां धान की किस्मों की इतनी जबरदस्त वैरायटी है कि गिनते-गिनते उंगलियां थक जाएं। आंकड़ा सुन लीजिए — अकेले छत्तीसगढ़ में धान की 20,000 से भी ज्यादा किस्में उगाई जाती हैं। यानी बंगाल ने भले ही धान की पैदावार में झंडे गाड़ दिए हों, लेकिन छत्तीसगढ़ ने धान के स्वाद, किस्म और विविधता में सबको चारों खाने चित्त कर दिया।
मिट्टी भी मस्त, मौसम भी खास
छत्तीसगढ़ की मिट्टी और जलवायु ऐसी है जैसे ऊपरवाले ने खास तौर पर धान की खेती के लिए डिजाइन की हो। यहां के आदिवासी समुदाय सदियों से धान की देसी किस्मों को संजोए हुए हैं। यही वजह है कि छत्तीसगढ़ के चावल का स्वाद और सेहतमंद गुण अलग ही लेवल पर हैं।
धमतरी: धान की राजधानी
छत्तीसगढ़ के ‘धान का कटोरा’ बनने में सबसे बड़ा रोल धमतरी जिले का है। रायपुर से करीब 70 किलोमीटर दूर इस इलाके में साल में दो बार धान की खेती होती है। अगर आपके घर में पुलाव, बिरयानी, पोहा या खिचड़ी का स्वाद यादगार बनता है, तो मुमकिन है कि उस चावल का सफर धमतरी से ही शुरू हुआ हो।
छत्तीसगढ़ की शान: खेतों में मेहनतकश महिलाएं
अब ये भी जान लीजिए कि छत्तीसगढ़ में धान की खेती की रीढ़ कौन है — यहां की महिलाएं! खेतों में रोपाई से लेकर कटाई तक का जिम्मा महिलाओं के कंधे पर ही टिका है। बिना मशीन के अपने हाथों से ये महिलाएं जो मेहनत करती हैं, वही छत्तीसगढ़ के धान को इतना खास बनाती है।
(Disclaimer: इस खबर में दी गई कुछ जानकारियां विभिन्न मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित हैं। किसी भी कृषि निर्णय को अपनाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ या कृषि अधिकारी से सलाह जरूर लें।)