रीवा, MP: सोचिए, आप खुद को एक विशाल किले के प्रांगण में खड़े पाते हैं। सामने सफेद संगमरमर से चमकता मंदिर है, जहां भगवान जगन्नाथ की भव्य प्रतिमा सजी है। आकाश में अचानक धड़-धड़-धड़ की आवाज गूंज उठती है — ये तोपों की सलामी है, जो सीधे भगवान को दी जा रही है। इसी बीच महक उठती है कढ़ी-चावल के ‘अटिका प्रसाद’ की, और रंगों से सराबोर भीड़ में मृदंग की थाप पर झूमते लोग नजर आते हैं। ये कोई साधारण होली का नजारा नहीं, बल्कि रीवा के बघेल राजवंश की शाही होली का ऐतिहासिक दृश्य है, जो सैकड़ों साल से उसी जोश और जुनून के साथ जिंदा है।
महाराजा भाव सिंह जूदेव का ऐतिहासिक फैसला
रीवा की इस खास होली की शुरुआत होती है महाराजा भाव सिंह जूदेव से। कहते हैं कि जब वे जगन्नाथ पुरी के दर्शन के लिए निकले थे, तो वहां की आध्यात्मिक भव्यता से इतने प्रभावित हुए कि लौटकर रीवा में तीन मंदिरों की स्थापना कर डाली। इनमें सबसे प्रमुख मंदिर भगवान जगन्नाथ का है, जिसे रीवा के राजपरिवार ने अपनी आस्था का केंद्र बनाया।
तोपों की सलामी और ‘अटिका प्रसाद’ की परंपरा
अब जरा सोचिए, जहां आम होली पर गुलाल उड़ता है, वहीं रीवा में भगवान जगन्नाथ को तोपों की सलामी दी जाती है! ये रीवा की खास परंपरा है, जो आज भी हर साल निभाई जाती है। इस मौके पर खासतौर पर तैयार किया जाता है ‘अटिका प्रसाद’ — यानी कढ़ी-चावल का विशेष भोग, जो राजा-महाराजाओं से लेकर आमजन तक सभी के लिए प्रसाद रूप में बांटा जाता है।
विश्वनाथ सिंह जूदेव और मृदंग वादन का किस्सा
रीवा की होली का जिक्र हो और मृदंग वादन का जिक्र न हो, ये कैसे मुमकिन है! रीवा के महाराज विश्वनाथ सिंह जूदेव इस परंपरा के लिए खास पहचाने जाते हैं। कहते हैं कि होली पर जब वे मृदंग लेकर बैठते थे, तो ऐसा समां बंधता था कि लोग झूमते-गाते रातभर रंगों में सराबोर रहते थे। उस दौर की फाग मंडली इतनी प्रसिद्ध थी कि लोग इसे देखने दूर-दूर से पहुंचते थे।
रीवा की होली और ब्रज का रिश्ता
रीवा की होली में सिर्फ शाही ठाठ ही नहीं, बल्कि ब्रज की फाग का भी खास अंदाज देखने को मिलता है। यहां के फाग गीतों में वो ही रस और मिठास है, जो ब्रज की गलियों में गूंजती है। रीवा की इस अनूठी परंपरा ने इसे मध्यप्रदेश में ‘ब्रज की दूसरी होली’ का खिताब दिला दिया है।
आज भी कायम है परंपरा
वक्त बदल गया, राजा-महाराजा अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गए, लेकिन रीवा की ये परंपरा आज भी उसी भव्यता के साथ जारी है। आज भी भगवान जगन्नाथ को तोपों की सलामी दी जाती है, अटिका प्रसाद का स्वाद लोग चखते हैं, और फाग मंडली के गीतों पर लोग झूमते नजर आते हैं।
रीवा की ये होली सिर्फ रंगों का त्योहार नहीं है, बल्कि एक ऐसी विरासत है, जिसमें आस्था, संस्कृति और परंपरा तीनों घुली हुई हैं। अगर कभी रीवा जाने का मौका मिले, तो इस ऐतिहासिक होली को देखने का मौका मत चूकिएगा — क्योंकि ये होली नहीं, इतिहास के रंगों में डूबी एक जिंदा कहानी है!